- डॉ. कृष्णस्वरूप आनन्दी
हमारा देश बहुराष्ट्रीय कॉरपोरेट महाबलियों का उपनिवेश बनता गया है। उन्होंने हमारी अर्थव्यवस्था के प्रायः सभी अंगों को अपने शिकंजे में ले लिया है। विनिर्माण, वित्त, व्यापार, औषध, दूरसंचार, सूचना-तन्त्र, बुनियादी ढाँचा (इंफ्रास्ट्रक्चर), प्रतिरक्षा, मीडिया, शिक्षा, हॉस्पिटैलिटी, पर्यटन जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों को अपनी गिरफ़्त में लेने के बाद उन्होंने खेती-किसानी और अब खुदरा कारोबार पर अपनी नजरें गड़ा दी हैं। इन्हें कब्जे में लेकर देश में वे अपने औपनिवेशिक तन्त्र को पुख़्ता और मुकम्मल करना चाहते हैं। ये दोनों ही क्षेत्र हमारे अर्थतन्त्र की बुनियाद में हैं।
कृषि क्षेत्र में बहुराष्ट्रीय कॉरपोरेट समूहों की दख़ल बढ़ती गयी है। बीज, खाद, कीटनाशी रसायन, यन्त्रोपकरण जैसे निवेश्य पदार्थों पर अधिकांशतः उनका ही एकाधिकार है। किसान अपनी उपज पर समुचित या लाभकारी मूल्य पाने से वंचित हैं। बढ़ती लागत, घटती सब्सिडी (राज राहत), घाटे की उपज, सिकुड़ता रकबा- इन सबके चलते किसान बदहाली में खेतीबाड़ी कर रहे हैं। बहुराष्ट्रीय एग्रीबिज़नेस कॉरपोरेशन इस बात को लेकर गदगद हैं कि हिन्दुस्तान के ज़्यादातर किसान कृषिकर्म को छोड़ने के लिए तैयार बैठे हैं इसलिए दुनिया-भर के दैत्याकार एग्रीबिज़नेस कॉरपोरेशन चाहते हैं कि मौजूदा कानूनों में ऐसे बदलाव किये जायँ ताकि वे किसानों से सीधे बेरोकटोक उनकी उपज खरीद सकें, उनसे ठेके पर खेती करा सकें और अन्त में उनके खेत हड़प सकें। इस प्रकार ‘किसानों द्वारा खेतीबाड़ी’ के बजाय ‘कॉण्ट्रैक्ट फ़ार्मिंग’ या ‘कॉरपोरेट फ़ार्मिंग’ का रास्ता साफ़ होगा। जहाँ एक ओर खेती-किसानी पर कब्ज़ा जमाने के लिए एग्रीबिजनेस कॉरपोरेशन अपने पाँव पसार रहे हैं, वहीं दूसरी ओर देश के कोने-कोने में फैले खुदरा कारोबार को अपने हाथों में लेने के लिए वैश्विक कॉरपोरेट परचूनिया कारोबारी यहाँ दस्तक दे रहे हैं। इन दोनों कॉरपोरेट बिरादरियों को चाहिए देशव्यापी विश्वस्तरीय बुनियादी ढाँचागत सुविधाओं का संजाल। इसीलिए देश-भर में एक्सप्रेस वे/नेशनल हाईवे, इण्डस्ट्रियल/इंफ्रास्ट्रक्चर कॉरीडॉर, हाई-टेक् टाउनशिप, शॉपिंग मॉल, कारोबारी कॉम्पलेक्स आदि बनाने वाली बड़ी-बड़ी परियोजनाओं पर तेज़ी से काम चल रहा है। इनके पूरा होने में अगर कहीं कोई रोड़ा आता है, तो उसे फौरन हटाने के लिए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में सीसीआई (कैबिनेट कमेटी ऑन इंवेस्टमेण्ट्) का गठन अभी हाल ही में हुआ है। यह सुपर-कैबिनेट भारत सरकार के पर्यावरण एवं वन, प्रतिरक्षा, ग्रामीण विकास तथा आदिवासी एवं पंचायती राज मन्त्रालयों की आपत्तियों को दरकिनार करेगी।खुदरा कारोबार के वाल-मार्टीकरण से न केवल फुटपाथ पर या सड़क के किनारे आबाद अगणित फुटकर व्यवसाय, गली-नुक्कड़ चौराहे के स्टोर, जगह-जगह चल रही छोटी-मझोली परचूनी दुकानें, हाट-बाजार, गुमटियाँ, ठेले, फेरी वाले धन्धे ये सब-के-सब चौपट होंगे; बल्कि खेती-किसानी का भी कॉरपोरेटीकरण होगा। देश के लोगों की जीवन-शैली अपसंस्कृति से अभिशप्त होगी, उनका मानस औपनिवेशीकृत होता जायेगा और वे अपनी जड़ों से कटते जायेंगे। वैश्विक कॉरपोरेट महादैत्य ऐसा भारत बनाने की तैयारी में लगे हुए हैं जो कहीं से भी स्वावलम्बी न रह जाय। स्वाधीनता, आत्मनिर्भरता, संस्कृति, सम्प्रभुता और स्वायत्तता के लिए वे कोई भी गुंजाइश नहीं छोड़ना चाहते।
वैश्विक कॉरपोरेट समूहों ने मिलकर देश पर हमला बोल दिया है। एफडीआई का हथियार चलाकर वे हमारा अस्तित्व मिटाना चाहते हैं। एकएक करके सभी क्षेत्रों पर एकाधिकार क़ायम करने का उनका सपना है। उनके इस सपने को चकनाचूर करना आज की सबसे बड़ी चुनौती है। देश के नौजवानों, छात्रों, कारोबारियों, किसानों, समाजकर्मियों, बुद्धिजीवियों और आम लोगों को एफडीआई के हमले को नाकाम करने के लिए लामबन्द होकर आगे आना होगा। देश का राजनीतिक नेतृत्व और सत्ता-प्रतिष्ठान कॉरपोरेट उपनिवेशवाद का एजेण्ट बन चुका है। उनसे अब उम्मीद करना बेकार है। कॉरपोरेटीकरण और उसके हथियार एफडीआई के खिलाफ जगह-जगह जन-संघर्ष छिड़े और उससे लोगों के बीच से नये नेतृत्व का आविर्भाव हो ताकि देश में लोकशक्ति-संचालित और कॉरपोरेट-मुक्त नयी व्यवस्था का अधिष्ठान हो। कॉरपोरेट शक्तियों के रहते नयी समाज-रचना असम्भव है। पहला अनिवार्य क़दम है कि उन्हें देश से बाहर किया जाय और फिर उसके बाद तृणमूल से ऊपर तक स्वराज्य की संरचना की जाय।
लोगों के बीच इस बात को लेकर जाने की जरूरत है कि एफडीआई को नाकाम करने के लिए बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के कारोबार को ठप करना होगा। उनके व्यापारिक/व्यावसायिक प्रतिष्ठानों, उत्पादन-संयन्त्रों और कारोबारी अड्डों को जब तक काम करने से रोका नहीं जायेगा, तब तक देश में एफडीआई का उन्मुक्त प्रवाह और खुला खेल जारी रहेगा। इसके साथ ही, देश में ऐसा माहौल बनाना होगा जिससे कोई भी वैश्विक कॉरपोरेट घराना देश में घुस करके कारोबार करने का दुस्साहस न कर सके। जब भारतीय जनगण से विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ खौफ खायेंगी, तब उनके छुटभैये यानी जूनियर पार्टनर देशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की क्या बिसात! (पीएनएन)

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