हर इन्सान को जिस मुल्क में वह रहता है, उस मुल्क का बाशिन्दा कहलवाने में गर्व होना चाहिए। हमें भी अपने मुल्क से बेइन्तहा प्यार है। शायद इसलिए कुछ लोगों ने बड़ी बुलन्दी के साथ एक नारा उछाला - ‘गर्व से कहो, हम भारतीय हैं।’
हम भारत में जन्मे हैं तो हमारा हक भी बनता है कि हम खुद को भारतीय कहें। बार-बार कहें। थक कर चूर न हो जाएँ तब तक खुद को भारतीय कहें। क्यों न कहें ? आखिर हमारा पाँच हजार वर्ष पुराना इतिहास है, शून्य का आविष्कार हमने किया, योग और आयुर्वेद दुनिया को हमने दिया। इससे ज्यादा देते तो दुनिया वाले हमें फिजूलखर्च मानते।
"ईस्ट इंडिया कंपनी का नाम बदल गया है। नया नाम है - ईट (EAT) इंडिया कंपनी ! हाल ही में दिल्ली के एक सेमिनार में अन्तरराष्ट्रीय व्यापार संगठन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा - ’हम भारतीय जनता के शुक्रगुजार हैं। आज हिन्दुस्तान में चार हजार विदेशी कम्पनियाँ काम कर रही हैं। भारत की जनता ने साथ नहीं दिया होता तो सफलता का यह मुकाम हासिल नहीं किया जा सकता था।’ ऐ खुदा ! चार हजार ईट इंडिया कंपनियाँ !"
इतिहास गवाह है कि हमने हमेशा एक सच्चे भारतीय होने का धर्म निभाया है ! सरहदों की लड़ाइयां हमारे लिए फिजूल थीं। परलोक सुधारना हमारे लिए ज्यादा जरूरी रहा। विदेशी आक्रमणकारियों के खिलाफ जंग लड़ना समय की बरबादी थी। हमारे लिए अहिंसा का संदेश फैलाना ज्यादा अहम था। जमीन के चंद टुकड़ों के लिए खून-खराबा हमें रास नहीं आया। विश्व-शांति के लिए कबूतर उड़ाना हमारे लिए सबसे बड़ी उपलब्धि थी। फिर ऐसा क्या हुआ कि हमारा गर्व चकनाचूर हो गया। हिन्दुस्तान की हैसियत एक खस्ताहाल और कर्जदार देश के रूप में दर्ज हो गई।
जिन लोगों ने हिन्दुस्तान में बिजली बनाने के लिए एनरॉन को बुलाया था, वे भारतीय थे। अब फिर से फ्रांस की एक कंपनी को न्यूक्लीयर पॉवर के उत्पादन के लिए बुलाया गया है। क्या बिजली बनाना भारतीयों के लिए वर्जित है ? या बिजली बनाने जैसा घटिया काम भारतीय करने लग गए, तो गर्व करने लायक क्या बचेगा ? जो काम विदेशी कर सकते हैं, वही काम भारतीय करने लग गए तो क्या हमारे इतिहास में एक बदनुमा दाग नहीं लग जाएगा ?
भारतीयों का भी एक इतिहास रहा है। इतिहास बेहद क्रूर और बेरहम होता है। किसी को भी नहीं बख्शता। भारतीयों का इतिहास एक हजार साल की गुलामी का इतिहास रहा है। शक, हूण, तातारी, लोदी, मुगल और अंग्रेज हमारी शस्य-श्यामला धरती पर राज करते रहे। न संसद में और न ही सड़क पर इस बात को आज कोई याद रखना चाहता है। यह सवाल हर उस शख्स से पूछना चाहिए जो खुद को भारतीय बतलाने में गर्व महसूस करता है।
जिस मुल्क में ढाई लाख किसानों ने आत्महत्याएँ की हों, जिस मुल्क में कुपोषण से मरने वाले बच्चों की संख्या दुनिया में सबसे ज्यादा हो, और जिस मुल्क में करोड़ों लोगों को एक वक्त की रोटी भी नसीब न होती हो, वहाँ किस पर गर्व करें ? यह महज नसीब की बात नहीं है। इस शर्मिन्दगी के लिए हम लोग जिम्मेदार हैं।
जो कौम अपनी गुलामी के दंश को नहीं अनुभव करती, उसका गुलाम हो जाना फिर से तय है। मुगलों को हमने नहीं बुलाया। उन्होंने छह सौ वर्शों तक राज किया। अंग्रेजों को हमने नहीं बुलाया। उन्होंने दो सौ सालों तक राज किया। इस बात का तो कयास भी नहीं लगाया जा सकता कि जिन बहुराष्ट्रीय कंपनियों को हमने (सरकार ने) दावत देकर बुलाया है वे हिन्दुस्तान पर कितने सालों तक राज करेगी ?
हद दर्जे की गरीबी, जहालत और खौफ में जीने वाला व्यक्ति गर्व से नहीं कह सकता कि वह भारतीय है। ऐसे हालात के लिए हमारी सरकारें, राजनेता और अफसरशाही जिम्मेदार हैं, जो बेशर्मी के साथ और पूरी रफ्तार के साथ देश को बेचने का काम कर रही है। लेकिन जिम्मेदारी हमारी भी है। जब हम विदेशी शीतल पेय की एक बोतल गटकते हैं, तो प्रति बोतल हिन्दुस्तान का सात रूपया बाहर चला जाता है। याने राज लाखों सॉफ्ट ड्रिंक्स पी-पीकर हम अपने ही मुल्क को कंगाल बनाने का काम करते हैं। विदेशी कंपनी के मिनरल वाटर का पानी हम भारतीय पीते हैं और धनवान अमरीका बनता है।
हमारे खान-पान, रहन-सहन और सोच-विचार पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों का कब्जा है। समूचा सिस्टम और मीडिया इनके साथ खड़ा है। भारत के तमाम बड़े उद्योगपति इनके साथ खड़े हैं। अगर हम सचमुच चाहते हैं कि खुद को गर्व से भारतीय कह सकें तो शुरूआत अपने घर से करनी पड़ेगी। विदेशी उत्पादनों के लिए घर के दरवाजे बन्द करने पड़ेंगे। सप्लाई लाइन बंद हो जाएगी तो जंग जीतने में आसानी हो जाएगी। दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात - हम उसी राजनैतिक पार्टी को वोट देंगे जो हिन्दुस्तान से बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भगाने का ऐलान करेगी।
संपर्क:
अक्षय जैन, 13 रशमन अपार्टमेंट, उपासनी हॉस्पिटल के ऊपर, एस. एल. रोड,
मुलुंड (प.), मुंबई- 400 080, फोन: 022 - 25601588, मो. 08080745058





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