February 19, 2013

पोस्टर -कविता : कंपनी की तोप

- वीरेन डंगवाल

प्रतीक और धरोहर दो किस्म की हुआ करती हैं। एक वे जिन्हें देखकर या जिनके बारे में जानकर हमें अपने देश और समाज की प्राचीन उपलब्धियों का भान होता है और दूसरी वे जो हमें बताती हैं कि हमारे पूर्वजों से कब, क्या चूक हुई थी , जिसके परिणामस्वरूप देश की कई पीढ़ियों को दारूण दुख और दमन झेलना पड़ा था। तोप कविता में ऐसे ही दो प्रतीकों का चित्रण है। पाठ हमें याद दिलाता है कि कभी ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में व्यापार करने के इरादे से आई थी। भारत ने इसका स्वागत किया , लेकिन बाद में वह हमारी शासक बन बैठी। उसने कुछ बाग बनवाए तो कुछ तोपें भी तैयार कीं। उन तोपों ने इस देश को आजाद करने निकले जाँबाजों को मौत के घाट उतार दिया। पर एक दिन ऐसा भी आया जब हमारे पूर्वजों ने अंग्रेजी सत्ता को उखाड़ फेंका। तोप को निस्तेज कर दिया। हमें इन प्रतीकों के माध्यम से यह याद रखना होगा कि भविष्य में कोई और ऐसी कंपनी यहाँ पाँव न जमाने पाए जिसके इरादे नेक न हों। भले ही अंत में उनकी तोप भी उसी काम क्यों न आए जिस काम में इस पाठ की तोप आ रही है……..


































कंपनी बाग के मुहाने पर धर रखी गई है यह 1857 की तोप
इसकी होती है बड़ी सम्हाल , विरासत में मिले
कंपनी बाग की तरह

साल में चमकाई जाती है दो बार
सुबह शाम कंपनी बाग में आते हैं बहुत से सैलानी
उन्हें बताती है यह तोप
कि मैं बड़ी ज़बर
उड़ा दिए थे मैंने
अच्छे-अच्छे सूरमाओं के धज्जे
अपने ज़माने में

अब तो बहरहालछोटे लड़कों की घुड़सवारी से
अगर यह फ़ारिग हो
तो उसके ऊपर बैठकर
चिड़ियाँ ही अक्सर करती हैं गपशप
कभी – कभी शैतानी में वे
इसके भीतर भी घुस जाती हैं
खास कर गौरेयें

वे बताती हैं कि दरअसल कितनी भी बड़ी हो तोप
एक दिन तो होना ही है उसका मुँह बंद


साभार: hi.shvoong.com

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