April 18, 2013

और अंत में : मॉल के अन्दर - बाहर

- हनुमंत शर्मा

फरीह पर निकले 'गॉड जी ' चीन के एक मॉल में घुसे और भीतर ही भीतर अमेरिका में जा निकले |

भीतर यह देखकर उनके आश्चर्य का पारावार ना रहा कि सब के पास खाने को पिज़्ज़ा बर्गर है पहनने को ब्रांडेड कपड़े हैं स्वागत के लिए आतुर सुन्दर लड़के लडकियां है |...बानी और पानी सब एक- रस होकर, दुनिया एक गाँव बन गयी है | 

‘मै इन्हें भले एक ना कर सक मगर बाज़ार ने सब भेद भाव मिटाकर दुनिया को एक कर दिया ‘ 'गॉड जी' ने खुश होकर सोचा |

पर बाहर निकले तो ये देखकर गश खा गये कि भीतर के लोग जितने मालामाल हैं बाहर के लोग उतने ही कंगाल हैं ...भीतर जितनी समरसता है बाहर की दुनिया जाति धर्म भाषा और क्षेत्र में उतनी ही बँटी है |
गॉड जी' जी तुरंत अपनी नोट बुक में दर्ज किया कि क्या दुनिया का बँटा होना बाज़ार के एक होने में मदद करता है ?और क्या मॉल की खुशहाली का बाहर की कंगाली से कोई समानुपातिक संबंध है ?

मगर स्वर्ग लौटकर 'गॉड जी' किसी निष्कर्ष पर पहुँचते इसके पहले ही उनकी नोटबुक चोरी हो गयी। कहते हैं इसमें सी आई ए का हाथ है !!!




1 comment:

  1. पहली बार जब मुंबई गया था ..कोई १५ साल पहले तब वाशी न्यू मुंबई में एक माल चालू हुआ था ...उसके पिछवाड़े जो जीवन की दुर्दशा देखी थी ....सोचकर आज भी उबकाई छूट जाती है ....बाज़ारवाद ने मनुष्य को जींस में बदल दिया है यह सभ्यता का सबसे दर्दनाक और शर्मनाक पतन है

    ReplyDelete